मुठ्ठी में रेत सा लगता क्यूँ है
ऐ समय
तू आगे ही आगे निकलता क्यूँ है |
बस एक कदम आगे
हाथ के पहुँच से बाहर
हमेशा नजर के सामने
ऐ समय
तू आगे ही आगे निकलता क्यूँ है|
ऐ समय
जरा ये तो बता
तेरा रूप इतना क्यूँ मनचला
कल तो मुझे दुनिया तू कुछ और था दिखता
आज कुछ नए सपने बनता
क्या तुझे किसी ने नहीं बताया
टूटे सपनो का दुःख
और अगर है बताया तो तू
क्या इतना निरदयी है
इतना निर्मोही
की आज भी आँखों में नए सपने है डालता
क्या तुझे मेरे आंसुओं में
पुराने टूटे सपनो का दर्द नहीं दीखता
रुक तो
जरा बात तो सुन
ऐ समय
तू आगे ही आगे निकलता क्यूँ है|
-Composed by a dear friend Sunil Kumar Singh.