27 October, 2012

On the road . . .

I am back.
On the road that is.
Felt I was missing something.
Not a big deal I know.
Perhaps it is after all a way for me to get back the composure.
To be back with uncertainty.
To get familiar with the unfamiliar.
The faces that all tell stories.
The chairs and seats all watching the action unfold day after day.
The anxious moments of turbulence.
Chai-Wai at the unknown stops.
Pressure controlled cabins.
Wish one could do that to the mind as well.
Up one goes down she comes.




14 October, 2012

The traveller in me...


Just made this small poster to remind myself that no matter what the circumstances are, I will travel. 

09 October, 2012

When a poem touches your heart..


The genius of Tagore.

यहाँ जो गीत गाने आया था , उसे गा नहीं सका |
आज केवल वीणा के तारों का स्वर साधता रहा,
गाने की आस मन में ही रह गयी |
मेरे स्वरों में सम नहीं आया , मेरे शब्द लड़खड़ाते रहे
केवल प्राणों में गीत गाने की व्याकुलता भरी रही |
फूल खिले नहीं, केवल एक हवा बहती रही |
मैंने उसके दर्शन नहीं किये , उसके बोल नहीं सुने, केवल
उसकी पग्ध्वानी ही बीच-बीच में सुनता रहा
वह मेरे द्वार के सामने से आता-जाता है ,
मेरा सारा दिन उसके सत्कार के लिए
आसन बिछाने में बीत गया ,
घर में दीया भी न जला सका,
तो अब उसे कैसे पुकारूँ?
उससे मेरी भेंट नहीं हुई;
किन्तु वह आएगा, भेंट होगी, यह आशा मेरे प्राणों में बसी है.
This one has so much meaning in my life at this point of time.